kabir Das Biography In Hindi :- कबीर दास 15वीं शताब्दी रहस्यवादी कवि और संत थे|कबीरदास का नाम का अर्थ है महान| वह किसी भी धर्म को नहीं मानते थे और वह धर्मनिरपेक्ष थे और जब तक वह जिंदा थे, उन्हें हिंदू और मुसलमान दोनों तरफ से उनके विचारधारा के लिए धमकियां मिलती रहती थी| पेशे से वह कपड़े बुनने का काम करते थे लेकिन समाज के लिए वह ऐसी बातें कहकर चले गए कि आज उनके बगैर भारत की कहानी अधूरी है| उनके बारे में ऐसा भी कहा जाता है कि अगर आज वह जिंदा होते तो ना जाने कितने मुकदमे उन पर दायर हो चुके होते |
Table of Contents
kabir Das Biography In Hindi | Wikipedia
नाम | कबीर दास |
जन्म | 1440 |
जन्मस्थान | काशी (वाराणसी, उत्तर प्रदेश ) |
मृत्यु तिथि |
1518 |
माता का नाम | नीमा |
पिता का नाम | नीरू |
पत्नी का नाम |
लोई |
Early Life Of Kabir Das (कबीर दास का प्रारंभिक जीवन)
कबीर दास का जन्म 1440 में हुआ था लेकिन विद्वानों में कबीरदास के जन्म स्थान के बारे में मतभेद है लेकिन अधिकतर विद्वान मानते हैं कि उनका जन्म काशी में हुआ था| हालांकि किसी को नहीं पता है कि कबीर दास को किसने जन्म दिया था लेकिन माना जाता है कि कबीर दास को एक विधवा ब्राह्मणी ने जन्म दिया था और वह नवजात शिशु को लहरतारा तालाब के पास छोड़ गई थी| नीरू और नीमा नाम के मुसलमान दंपति ने कबीरदास बालक को अपने घर ले गए और उन्होंने ही कबीर दास को पाला पोसा और यह मुसलमान दंपत्ति पेशे से जुलाहा थे | कबीर दास को इस मुस्लिम दंपत्ति ने काफी प्रेम दिया और वह बचपन से ही जुलाहे का काम सीखने लगे | बालक कबीर दास को मदरसे में जाकर पढ़ने लिखने का मौका नहीं मिला | बनारस बहुत बड़ा तीर्थ स्थल था और वहां साधु-संतों का जमघट लगा रहता था| शुरुआत में बालक कबीर दास को यह सब काफी अच्छा लगा था और वह सभी साधु संतों के बाल देखा करते थे और उनके वेशभूषा देख कर खुश हुआ करते थे| यह सब देखने के लिए कबीर दास अक्सर अपने घर का काम छोड़ कर बाहर चले जाते थे |उनके माता-पिता काफी हैरान थे कि वह काम छोड़कर कहां चले जाते हैं| धीरे-धीरे समय बीतता गया और उनके माता-पिता ने कबीर दास की लापरवाही को देखकर उनके ऊपर काम का बोझ बढ़ाने का प्रयास किया| एक बार की बात है कबीर दास की मां ने उन्हें कपड़ा बेचने के लिए बाहर भेजा लेकिन शाम तक वह घर वापस नहीं लौटे सभी को फिक्र होने लगी जब कबीरदास वापस लौटे तो मां ने पैसे के बारे में पूछा लेकिन कबीर दास ने कहा कि उन्होंने कपड़े बेचे नहीं बल्कि घाट पर लोगों में बांट दिए| इसके बाद कबीरदास कई-कई दिन तक घर नहीं लौटते थे और माता पिता के पूछने पर जवाब भी नहीं दिया करते थे| कबीरदास अक्सर घूमते-घूमते दूर निकल जाते थे और देखते थे कि लोग मस्जिदों में नमाज पढ़ रहे हैं, मंदिरों में भीड़ लगी है और साधु-संत लोग ज्ञान बांट रहे हैं और इस वक्त कबीरदास के मन में कई सवाल उठ खड़े होते थे, ऐसे सवाल जिसे आम लोग नहीं सोच सकते थे| कभी-कभी कबीर दास रात में गंगा के तट पर बैठकर घंटों अपने सवालों के जवाब ढूंढने की कोशिश करते थे | कबीर के मन में ऐसे प्रश्न उठते थे जिसे आम लोग सोच नहीं सकते थे जैसे: लोग मंदिर और मस्जिद क्यों जाते हैं| इस तरह के कई सवाल कबीरदास के मन में उठा करते थे|
धीरे-धीरे समय बिता गया बीतता गया और कबीर दास के मन में जो सवाल उठते थे उसका उत्तर कहीं उन्हें नहीं मिलता था| जिसके कारण उनकी परेशानी बढ़ती जा रही थी और अक्सर वह साधुओं के बीच घंटो बैठे रहते थे लेकिन वहां पर भी उन्हें तसल्ली नहीं मिलती थी| उन दिनों बनारस में आचार्य रामानंद का बड़ा नाम था और कबीर दास उन्हें अपना गुरु बनाना चाहते थे लेकिन आचार्य रामानंद ने कबीर दास को शिष्य बनाने से मना कर दिया | इसके बाद कबीरदास ने ठान लिया था कि वह स्वामी रामानंद को ही अपना गुरु बनाएंगे| अक्सर सुबह 4:00 बजे स्वामी रामानंद गंगा स्नान के लिए जाया करते थे और कबीर दास ने सोचा कि वह 4:00 बजे से पहले ही उनके जाने के मार्ग में सीढ़ियों पर लेट जाएंगे और उन्होंने ऐसा ही किया जब स्वामी रामानंद स्नान किए जा रहे थे तो उनका पैर कबीरदास से टकरा गया क्योंकि कबीरदास सीढ़ियों पर लेटे हुए थे और पैर टकराते ही स्वामी रामानंद के मुख से निकला राम राम और कबीर ने उसी राम को दीक्षा-मंत्र मान लिया और रामानंद जी को अपना गुरु स्वीकार कर लिया | कबीर दास के राम संसार के कण-कण में विराजते थे |
एक बार कबीर दास के पिता बाजार से घर आते समय बारिश में भीग गए और सर्दी लगने से उनकी तबीयत बिगड़ती चली गई और उस वक्त घर में इलाज करवाने के लिए भी पैसे नहीं थे| कबीर दास ने जी जान से अपने पिता की सेवा की लेकिन कबीर दास के पिता ठीक नहीं हो सके और उनका स्वर्गवास हो गया| कबीरदास समझते थे कि मां-बाप के प्रति उनकी जो जिम्मेदारी थी वह सही से निभा नहीं सके लेकिन उनका दोष तो इतना ही था कि वह अपने चारों ओर फैले झूठ में सच की तलाश करते रहे थे | पिता की मृत्यु के बाद कबीर दास ने जुलाहे का काम संभाल लिया और उनकी मां को लगने लगा कि कबीरदास सुधर गए हैं लेकिन ऐसा नहीं था| कबीरदास बाहर कपड़ा बेचने जाने लगे|
Kabir Das’s Personal Life ( कबीर दास का व्यक्तिगत जीवन)
कबीर की शादी लोई से हुई थी और लोई एक अनाथ बालिका थी | शादी के बाद कबीर दास की मां को लगा कि अब उनका बेटा सुधर जाएगा लेकिन कबीरदास नहीं बदले| कबीर जब काम करते थे तब उनका मन अंदर ही अंदर उस ईश्वर को ढूंढता रहता जो ना मंदिर में रहते थे ना मस्जिद में, वह उस ईश्वर को ढूंढते थे जो कण-कण में समाया हुआ है और फिर एक दिन कबीर दास की मां की मृत्यु हो गई| कुछ समय बाद कबीर दास के घर में एक बेटी और एक बेटी ने जन्म लिया लेकिन उनकी गरीबी कम नहीं हुई क्योंकि कबीर दास का मन कपड़ा बुनने में नहीं लगता था| इसके बावजूद कबीर दास रोजाना घर में दो-तीन साधुओं को लेकर आते थे और उन्हें खाना खिलाते थे| यह सब बातें उनकी पत्नी को अच्छी नहीं लगती थी क्योंकि घर में आमदनी नहीं थी और खर्चे ज्यादा थे| कबीर दास पर घर पर आई विपत्ति का कोई असर नहीं होता और अक्सर कहा करते थे कि उस बड़े जुलाहे की ओर देखो जिसने संसार भर में अपने अपना ताना-बाना फैला रखा है और अब मेरा एक ही काम है उसके नाम की धुन लगाऊं| उनकी घर की स्थिति ऐसी हो गई थी कि अब भीख मांगने के अलावा कोई उपाय नहीं बचा था लेकिन कबीरदास कहते कि यदि भगवान मेरी आन की रक्षा करें तो मैं अपने बाप से भी भीख ना मांगू, मांगना और मरना एक है| वह ईश्वर से प्रार्थना करते थे हे प्रभु मैं जानता हूं की बचपन से ही मेरी आत्मा कि लौ तुमसे लगी है यह केवल तुम्हारी कृपा के कारण ही है लेकिन हे भगवान भूखे पेट आपकी भक्ति नहीं हो सकती यदि तुम स्वयं कुछ नहीं दे सकते तो मैं तुमसे मांग लेता हूं साईं इतना दीजिए जामे कुटुम समाय मैं भी भूखा ना रहूं साधु न भूखा जाए|
कबीर दास एक ही ईश्वर को मानते थे और कर्मकांड का घोर विरोध करते थे| उन्होंने आज तक कोई ग्रंथ नहीं लिखा लेकिन उनके मुख से भाखे उनके शिष्यों ने उसे लिख लिया | वह अवतार,मूर्ति पूजा, रोजा, ईद ,मस्जिद, मंदिर आदि को वह नहीं मानते थे |कबीर दास जहां भी जाते थे समाज में फैले अंधविश्वास और पाखंड का विरोध करते थे सभी अपने मत और संप्रदाय की बात करते थे पर कबीरदास की बात किसी की समझ में नहीं आती | कुछ लोग उनकी बात सुनते थे और कुछ लोग उनकी बातों का मजाक उड़ाते थे और यह बात कबीर दास की पत्नी तक पहुंच गई की कबीर दास की हर जगह चर्चा फैल गई है और उस समय हिंदुओं और मुसलमानों दोनों में खलबली मची हुई थी कि यह कबीरदास जो मंदिर और मस्जिद के पाखंड के बारे में कहता है ऐसी बात तो पहले कभी नहीं हुई| कबीर दास की पत्नी उन्हें बहुत समझाती थी लेकिन कबीरदास कहते थे कि मुझे कोई नहीं समझता| धीरे-धीरे कबीरदास के कई दुश्मन खड़े हो गए और यह वह लोग थे जिनका लाभ केवल इस प्रथा पर था जिससे लोग गुमराह होते रहे |उन धार्मिक पाखंडीयों ने कबीर की झोपड़ी में आग लगा दी लेकिन उस वक्त कबीरदास झोपड़ी में मौजूद नहीं थे | उन दिनों सिकंदर लोदी दिल्ली के सिंहासन पर बैठा था उसके पास कबीर दास की कई शिकायतें पहुंचने लगी| जिसके बाद कबीरदास को उसके सामने पेश किया गया और सिकंदर लोदी ने कबीर दास को काफिर कहा लेकिन कबीर दास ने कहा कि जो लोग दूसरों का दुख दर्द जान सकते हैं वही पीर होते हैं बाकी तो सब काफिर हैं लेकिन सभी लोग उनके विरोध ही नहीं थे| उनके भक्तों में वह लोग शामिल थे जो पुराने प्रथाओं के कारण नुकसान उठाया और अंधविश्वासों के शिकार गरीब लोग उनके भक्त थे| कबीरदास अपनी बातों को बेखौफ कहते थे|
कबीर के छंदों को आदि ग्रंथ में शामिल किया गया था, सिख धर्म के ग्रंथों के साथ| कबीर दास के साहित्य विरासत को उनके दो शिष्यों भागोदास और धर्मदास ने बनाया था और कबीर के गीतों को क्षितिमोहन सेन ने भारत भर के संगीतकारों से एकत्र किया था और रविंद्र नाथ टैगोर द्वारा इसे अंग्रेजी में अनुवादित किया गया था|
Major works of Kabir Das (कबीर दास की प्रमुख कृतियां)
धर्मदास ने कबीर दास के वाणियों का संग्रह एक ग्रंथ में किया है जिसका नाम बीजक है इसके 3 दिन मुख्य भाग हैं : साखी , सबद (पद ), रमैनी।
- साखी:- अधिकांश साखियां दोहों में लिखी गई है और इसमें कबीर की शिक्षाओं और सिद्धांतों का वर्णन है|
- सबद:- इसमें कबीर दास के प्रेम और अंतरंग साधना का वर्णन है|
- रमैनी:- इसे चौपाई छंद में लिखा गया है इसमें कबीर के रहस्यवादी और दार्शनिक विचारों को प्रकट किया गया है|
Death of Kabir Das (कबीर दास की मृत्यु)
धीरे-धीरे समय बीतता गया और एक समय ऐसा आया जब कबीर दास की मृत्यु हो गई| कबीरदास के मानने वालों में हिंदू और मुसलमान के लोग दोनों शामिल थे| कबीर दास का शव चादर से ढक रखा था और दोनों तरफ के लोग आपसी विवाद में उलझे थे| हिंदू कह रहे थे कि वह उनका दाह संस्कार करेंगे और मुस्लिम कह रहे थे कि वह उनको दफनायेंगे | लेकिन कहा जाता है कि अचानक पूरे वातावरण में फूलों की खुशबू फैल गई और जब लोगों ने चादर हटाया तो पाया कि वहां कबीर के शव की जगह फूल पड़े हुए हैं और दोनों तरफ के लोगों ने उस फूल को आपस में बांट लिया|
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